Saturday, December 06, 2014

Sometimes


Not the darkness
But it is the blinding light
That makes us think its day
To dupe us, till morning arrives.

Sometimes
Not the clouds
But the clear sky
Makes us believe its all well
To fool us, till sudden downpour it is.

Sometimes
It is not mistrust
But love;
Getting overt and excess
To reach a point, to suffocate love itself.

Sometimes
It is not love
But the sense of self
Overshadowing, candid but an uncontrolled demon

To murder love, by ego. 

Friday, October 24, 2014

मुस्कुराते तारे


आसमान उठाता है कुछ सवाल
सूरज की तपिश जिस्म जलाती है
चाँद रात को आता है
तो क्या वो ठंडा टुकड़ा है आसमान का?
क्योंकि ज़मीन को मिलता नही आराम कभी
दिन हो के रात, दबी रहती है बोझ में….
.

ज़मीन ने सवाल उठाए हैं कई
बे-सरहद बे-लगाम सा है…
तकता रहता है दामन पसारे
कुछ बोलता क्यों नही, क्या चाहिए उसे?
आसमान, बिजली चमका के बरस जाता है
भिगो के भर देता है ज़मीन का आँचल थोड़ा और
.

ये ज़मीन और आसमान कहीं तो मिलते होंगे
कहीं तो होती होगी ये बहस ख़त्म
कभी तो मिलते होंगे गले ये
बाँटते होंगे तक़लीफें अपनी
.

फिर कल रात एक अंजुमन देखी….
ज़मीन भेज रही थी कुछ बिजलियाँ;
फेंकती थी कुछ रोशनियाँ आसमान की ओर
और आसमान खिल उठता था रंगों से
बाहें खोल के ले रहा था सारे तोहफे.
दौड़ रहे थे उजले, जगमगाते, मुस्कुराते तारे
दोनों की तहें एक कर के
ज़मीन आसमान सी थी और आसमान ज़मीन सा….

.
ishQ
24th October 2014

Wednesday, May 14, 2014

इल्ज़ाम

हर इंतेहाँ का अंजाम, ज़रूरी नही
हर सज़ा का इल्ज़ाम, ज़रूरी नही

तुम्हारी गुज़ारिश ज़रूरी है मगर
आए उनका भी सलाम, ज़रूरी नही

तराना-ए-महफ़िल गुनगुनाया भी अगर
तुम्हारे लिए हो वो पयाम, ज़रूरी नही

उम्र भर जिस फ़ैसले का इंतेज़ार हो
आख़िर हो जाए अपने नाम, ज़रूरी नही

हर रात अंधेरा लाती है मगर
सियाह हो हर शाम, ज़रूर नही

ज़िंदगी


.
गर तू सब जानती है, ज़िंदगी?
फिर क्यों हिसाब मांगती है, ज़िंदगी?
.
वो जो बदल गया मेरे अंदर,
उस शक़्स को पहचानती है, ज़िंदगी?
.
दर्द में भी जीना है हंसते हुए
ये कैसी दीवानगी है, ज़िंदगी?
.
उसके जाते ही सब वीरान हो गया,
बस साँसों में इक तूफान सी है, ज़िंदगी.
.
क्या कुछ कह गया जाते-जाते
मुझे अब तक हैरानगी है, ज़िंदगी.
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ishQ
15th May 2014

Thursday, December 26, 2013

कटी पतंग

वो दुपहर याद है मुझे,
पतंगे उड़ रहीं थीं हर ओर,
आसमान, बिना बारिश के,
सतरंगी बिखेर रहा था,
दिल भी रंगीन हो रहा था मेरा….
.
हम मिल रहे थे पहली बार....
हवा की नयी चाल थी,
बातें शुरू हुईं...
कहते सुनते रहे हम,
कई बातें हुईं...
पेंच लड़ रहे थे कई
गुफ्तगू होती रही
.
कही सुनी बातों का
अंजाम निकलता रहा
पतंग कटने के बाद
कुछ अनसुलझी माँझें
रह गयी थी ज़मीन पे
कुछ बातें हम भी
नहीं कह पाये
.
शाम ढलने को थी
सूरज मद्धम हो चला था
पतंगे भी कम हो गये थे
मायूस लौट रहे थे कुछ लोग
टीस उठती है जब
अपनी पतंग कट जाए
हमारा साथ छूटने को था
.
दो पतंगें अब भी थी वहाँ
डूबते सूरज से खेलती हुई
हल्की छेड़, हल्की उड़ान
फासला था उनमे, मगर
जैसे कर रही हों, आखरी गुगतगु
फिर मिलेंगे किसी आसमान पे
फिर गिरेंगे किसी छत पे कभी

Monday, August 26, 2013

शरारत

मुद्दतों से कोई ज़ियारत नहीं हुई,
दिल मे भी कोई शरारत नहीं हुई

उमड़े कई एहसास ज़हेन-ओ-जिगर मे मगर,
जला सके जो हमे वो हरारत नहीं हुई

शुरू की थी जो बड़े एलान-ए-जश्न से,
मुक़म्मल अभी तक वो इमारत नहीं हुई

उम्र भर वो आते रहे बज़्म मे तुम्हारी, इश्क़
फिर भी उन्हे तुम्हारी आदत नहीं हुई


Sunday, August 25, 2013

राज़

बेपरवाही से बता देता हूँ तुम्हे सारे राज़ अपने,
और एक तुम हो, मुझसे ही छुपाते हो रंग-ए-अंदाज़ अपने

मैं बद-हाली मे भी बहाल रहता हूँ,
ये देख हो जाते हैं मुझसे, नाराज़ अपने

बुतो पे एतबार का लिहाज़ ज़रूरी है मगर,
मदद-ए-इंसान ही हो दुआ-ओ-नमाज़ अपने

गर तू है, तो तुझको भी इल्म हो रहा होगा,
वक़्त आ रहा है के दिखाओ जलवा-ए-इजाज़ अपने

तुम भी हत्यार ले के घूमते हो, इश्क़,

संभाल के इस्तिमाल करो ये अल्फ़ाज़ अपने

Tuesday, August 06, 2013

इंतेज़ांम

कभी शक़्स, कभी उसकी सोच बेवफा हो जाती है,
और कभी किसी अजनबी से ज़िंदगी आशना हो जाती है

चाँद अपनी कसम तोड़ के छुप जाता है बादलों में,
खामोश अकेली रात रुसवा हो जाती है

इश्क़ की खुशी ना सही, दर्द का ही इंतेज़ांम कर दे,
बेमतलब की ज़िंदगी सज़ा हो जाती है

तुम्हारे रूठने से ये आलम होता है,
इंतेज़ार-ए-दीदार मे साँस खफ़ा हो जाती है